आज के इस घोर कलियुग में जब मनुष्य अपने कुटुंब को भूलकर सिर्फ लोट, नोट और वोट के पीछे पागल हुआ जा रहा है, तब हमें अपने इतिहास के उन महान ऋषिमुनियों को याद करना चाहिए जिन्होंने हमें “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना दी। इस भावना में, वसुधा यानी पृथ्वी और कुटुंब यानी परिवार, अर्थात् विश्व एक परिवार है, जहां समस्त मानव जाति एक-दूसरे से संबंधित है, खून के रिश्ते से नहीं, बल्कि खून बनाने वाले के रिश्ते से।
यदि मनुष्य ऐसा सोचने लगे, तो विश्व में युद्ध रुक जाएंगे और घोर कलियुग के जो अनगिनत मामले हमारे सामने दिखाई देते हैं, वे बंद हो जाएंगे। छोटी-बड़ी गलतियों को भूलकर, सामने वाले व्यक्ति को अपने कुटुंब का सदस्य मानने से कई समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
आज के समय में, हमें लगता है कि हम बहुत आगे बढ़ गए हैं, लेकिन वास्तव में हम अपने मूल्यों और सिद्धांतों से दूर होते जा रहे हैं। हम अपने परिवार, समाज और देश के लिए क्या कर रहे हैं? क्या हम वास्तव में एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सहयोग की भावना रखते हैं?
“वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना हमें यही सिखाती है कि हम सभी एक हैं, और हमें एक-दूसरे के साथ सहयोग और सहानुभूति के साथ व्यवहार करना चाहिए। यह भावना हमें अपने परिवार, समाज और देश के लिए काम करने की प्रेरणा देती है।आज के समय में, हमें इस भावना को फिर से जीवंत करने की आवश्यकता है। हमें अपने बच्चों को यह सिखाना होगा कि वे अपने परिवार, समाज और देश के लिए क्या कर सकते हैं। हमें उन्हें यह सिखाना होगा कि वे एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सहयोग की भावना रखें।
“वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना हमें यह भी सिखाती है कि हम सभी एक ही पृथ्वी के निवासी हैं, और हमें इसकी रक्षा करनी होगी। हमें अपने पर्यावरण की रक्षा करनी होगी, और इसके लिए हमें अपने जीवनशैली में बदलाव लाने होंगे।

आज के समय में, हमें लगता है कि हम पर्यावरण की रक्षा के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। लेकिन हमें यह याद रखना होगा कि हम सभी एक ही पृथ्वी के निवासी हैं, और हमें इसकी रक्षा करनी होगी। हमें अपने दैनिक जीवन में बदलाव लाने होंगे, जैसे कि ऊर्जा की बचत करना, पानी की बचत करना, और कूड़ा-कचरा प्रबंधन करना।
“वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना हमें यह भी सिखाती है कि हम सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। हमें अपने समाज और देश के लिए काम करना होगा, और हमें एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सहयोग की भावना रखनी होगी।आज के समय में, हमें लगता है कि हम अपने समाज और देश के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। लेकिन हमें यह याद रखना होगा कि हम सभी एक ही समाज और देश के सदस्य हैं, और हमें इसके लिए काम करना होगा। हमें अपने समाज और देश के लिए कुछ करने की आवश्यकता है, जैसे कि सामाजिक कार्य करना, पर्यावरण की रक्षा करना, और शिक्षा को बढ़ावा देना।
“वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना हमें यह भी सिखाती है कि हम सभी एक ही मानव जाति के सदस्य हैं। हमें एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सहयोग की भावना रखनी होगी, और हमें अपने समाज और देश के लिए काम करना होगा।
आज के समय में, हमें लगता है कि हम अपने मूल्यों और सिद्धांतों से दूर होते जा रहे हैं। लेकिन हमें यह याद रखना होगा कि हम सभी एक ही मानव जाति के सदस्य हैं, और हमें एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सहयोग की भावना रखनी होगी। हमें अपने मूल्यों और सिद्धांतों को फिर से जीवंत करने की आवश्यकता है, और हमें अपने समाज और देश के लिए काम करना होगा।
अंत में, हमें यह याद रखना होगा कि “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना हमें एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सहयोग की भावना सिखाती है। हमें अपने परिवार, समाज और देश के लिए काम करना होगा, और हमें एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सहयोग की भावना रखनी होगी। हमें अपने मूल्यों और सिद्धांतों को फिर से जीवंत करने की आवश्यकता है ।